ऐसे रखें बच्चों के स्क्रीन टाइम को संतुलित

आज के समय में स्क्रीन टाइम बच्चों और पेरेंट्स के बीच मनमुटाव एक बड़ा कारण बन गया है. कितना भी टाइम बच्चे टीवी, मोबाइल या टैबलेट देखने में बिताये, वो उन्हें कम ही लगता है. यूं कहे कि उनका मन ही नहीं भरता अपनी आँखें अलग-अलग स्क्रीन्स में लगा कर. वही दूसरी तरफ मायें परेशान रहती हैं बच्चों के ऐसे फ़ोन या टीवी से चिपके रहने से. वो भरपूर कोशिश करती है कि बच्चे दूर रहे फ़ोन और टीवी से. पर हर चीज की सीमा होती है. आज के ज्यादातर बच्चों का स्क्रीन टाइम से लगाव इतना ज्यादा हो गया है कि उन्हें कितना भी टोको या भटकारो, वो फिर भी टीवी और फ़ोन की जिद पकड़े रहते है.

मेरे घर में भी एक ४ साल का टीवी और मोबाइल प्रेमी हैं. वो पहले इतना ज्यादा टीवी के कार्टून या यूट्यूब पर वीडियोस देखने की जिद नहीं करता था. पर एक बीच मेरा बेटा काफी बीमार हो गया. तेज़ बुखार की वजह से वो कुछ खाना नहीं चाहता था. पर खाना तो जरुरी था, दवा जो देनी थी. तो मैं और मेरे पतिदेव बेटे को अलग-अलग तरीको से खाना और दवा देने की कोशिश करने लगे. जिसमे TV ने कमाल कर दिया. एक कार्टून चैनल देखते-देखते हमारा बेटा खाना भी खा लेता और दवा भी. थोड़ा सा उसका चिड़चिड़ाना भी कम हुआ क्युकी हम उसे बाहर नहीं ले जा रहे थे उसके बीमार होने की वजह से. और वो घर पर बंद चिड़चिड़ा हो गया था!

पर जल्दी ही मेरे बेटे को टीवी देखने आदत लग गई. सुबह उठते ही उसका काम बन गया टीवी देखते-देखते कुछ खाना और दूध पीना. एक बाद एक कार्टून देखते जाने के बाद भी जैसे ही मेरे पतिदेव चैनल बदलते, उसका लड़ना शुरू हो जाता था पतिदेव से. और जब उसे लगने लगता कि सिर्फ झगड़ कर बात नहीं बनेगी तो वो रोने लगता टीवी के लिए. एक दो बार हमने उसे रोता देख फिर से उसका कार्टून चैनल लगा दिया पर दिन ब दिन उसकी आदत और पक्की होती गई. मैंने अपने बेटे को समझाने की कोशिश की कि ज्यादा टीवी देखने से आँखों पर बुरा असर पड़ता हैं. पर कभी वो तो मान जाता पर कभी टीवी देखने की जिद पर अड़ जाता. फिर मुझे लगा कि अब कुछ ऐसे कदम उठाने होंगे जो बेटे की टीवी की आदत को बदले. छोटे बच्चों को आप ज्यादा समझा भी तो नहीं सकते कि स्क्रीन टाइम के क्या नुकसान हैं!

एक रिसर्च के अनुसार २०१३ से २०१७ के बीच ० से ८ साल के बच्चों का मीडिया/स्क्रीन टाइम तीन गुना बढ़ गया हैं. ये भी पाया गया कि बच्चे कम फिजिकल एक्टिविटी कर रहे हैं और उनका बचपन मोटापा, शुगर और डिप्रेशन जैसी गंभीर बीमारियों का शिकार होने लगा हैं. ये तो तय हैं कि एक जगह बैठे-बैठे लगातार टीवी/मोबाइल/टैबलेट देखने से बच्चों में स्वास्थय सम्बन्धी बीमारियाँ बढ़ रही हैं. पर मॉस्प्रेस्सो का सर्वे ये भी बता रहा हैं कि ज्यादातर मायें एसी बात से परेशान या स्ट्रेस में हैं कि उनके बच्चों का स्क्रीन टाइम ज्यादा हैं और वो बच्चों को रोक नहीं पा रही हैं. इसलिए मैंने कुछ टिप्स ऐसी माँओं से साझा करने का सोचा जो मेरे लिए कारगर रहे. 

१. आज के तकनीकी समय में जब सब कुछ डिजिटल हो रहा हैं, आप अपने बच्चों को पूरी तरह से टीवी/मोबाइल/टैबलेट से दूर नहीं कर पाएगी. कुछ बड़ी हस्तियों की बात अलग हैं जिनके घर में बच्चों को टीवी/मोबाइल/टैबलेट देखना एकदम मना हैं. आज के समय में ज्यादातर माता पिता दोनों काम करते हैं. उनके पास समय की कमी हैं और वो हर समय बच्चों का मनोरंजन नहीं कर सकते. अगर माँ घर पर भी रहती हो तो उसे घर के भी बड़े काम होते हैं. पुराने समय में लोग पड़ोसियों के यहाँ छोटे बच्चे दे आते थे कुछ समय के लिए और अपने काम करके उन्हें वापस बुला लेते थे. आज के परिवेश में वो भी सम्भव नहीं. तो ये विचार छोड़ दीजिये कि आप बच्चों को १००% टीवी/मोबाइल/टैबलेट से दूर कर लेंगी. अपने आप को दोषी मानना बंद कीजिये कि आप के बच्चे टीवी/मोबाइल/टैबलेट देखते हैं.

२. टीवी/मोबाइल/टैबलेट देखने की सीमाएं तय कीजिये बच्चों के साथ मिल कर. अपने परिवार के हिसाब से नियम बनाइये. कुछ नियम जो मैंने बनाए हैं वो ये हैं:

-जितना स्क्रीन टाइम एक दिन में उसका दो गुना बाहर खेलने का समय उसी दिन.

– टीवी/मोबाइल/टेबलेट देखने का समय निर्धारित कीजिये. जैसे शाम को थोड़ी देर या छुट्टी के दिन में किसी समय.

-घर में कुछ स्क्रीन फ्री ज़ोन्स, जैसे; बच्चों का बैडरूम/स्ट्रोलर, किचन और डाइनिंग एरिया.

-स्क्रीन फ्री घंटे, जैसे; सोने के एक घंटे पहले, खाना खाते समय, कार से कही जाते समय (कम दूरी पर).

-स्क्रीन डिवाइस रात में चार्ज कीजिये और उन्हें बच्चों के कमरे और बैडरूम से दूर रखिये.

-बच्चों के साथ उनके टीवी शो और यूट्यूब वीडियो देखिये. हमेशा नहीं तो जितनी बार आप कर पाए. उसके साथ उनके वीडियो गेम खेलिए. आपको पता चलेगा कि वो क्या देखते हैं और कहीं वो कुछ गलत तो नहीं देख या खेल रहे!

३. बच्चे स्क्रीन के चिपकेंगे जब उसके पास दूसरे बेहतर विकल्प नहीं होंगे घर में. उनकी उम्र के हिसाब से उन्हें कहीं और व्यस्त कीजिये. हर बच्चे की रूचि अलग चीजों में होती हैं, उसके अपने अलग शौक होते हैं. इसलिए माँ होने के नाते आप ये बेहतर सोच सकती हैं कि उन्हें कैसे व्यस्त किया जाए. मेरे बेटे को रंगों से बड़ा प्यार हैं इसलिए मेरे घर में अलग-अलग तरह के रंग हैं. पेंसिल/मोम/स्केच/वाटर वाले रंगो में से एक मैं अपने बेटे को देती हूँ और वो कागज पर जैसे चाहे वैसे चीजे बनाता हैं. मैं उसे गंदगी भी मचाने देती हूँ और उसी हिसाब से बेटे को घर में ऐसी जगह बैठाती हूँ जहाँ वो अपनी मर्ज़ी से जब तक चाहे रंगो के साथ खेले.

४. मेरे पतिदेव रोज हमारे बेटे को २ घंटे के लिए बाहर ले जाते हैं शाम को. घर के पास में पार्क नहीं हैं तो गली के बच्चे सड़क पर ही धमा-चौकड़ी करते हैं. हर बच्चे के साथ उसका एक अभिभावक भी वही रहता हैं जब तक बच्चे खेलते हैं. किसी के पापा, किसी बच्चे की दादी तो किसी की माँ, सब मिलकर ध्यान देते हैं. बच्चों को बाहर खेलने के लिए प्रोत्साहित कीजिये. जरुरी नहीं रोज किसी पार्क या किसी गेम जोन में जाए. सड़क पर या सोसाइटी के अंदर ही बच्चे दौड़-भाग कर सकते हैं.

५. बड़े सारे खिलौने भी बच्चों को टीवी/मोबाइल से दूर नहीं रख सकते. हर नया खिलौना कुछ दिनों के लिए  ही भाता हैं बच्चों को. फिर उसके बाद उन्हें कुछ नया चाहिए. इसलिए मैं एक काम करती हूँ. थोड़े-थोड़े दिनों में अपने बेटे का एक खिलौना छुपा देती हूँ. फिर जिस दिन वो जिद करता हैं टीवी की उस दिन वो खिलौना निकलता हैं वापस. उसे देख मेरा बेटा टीवी भूल जाता हैं. कुछ दिनों के लिए खिलौना छुपाने से वो फिर से नया जैसा लगता हैं उसे.

६. मेरे बेटे को मैं घर के कामों में भी व्यस्त रखती हूँ. उसे उसकी उम्र के हिसाब से काम देती हूँ और काम होने के बाद उसकी खूब सराहना भी करती हूँ. इससे वो ऐसे काम और करने के लिए खुद से तैयार रहता हैं. जैसे; फ्रिज में पानी की बोतलें रखना, खाना खाने से पहले फ्रिज से पानी की बोतलें लाना, खुद के कपड़ें (छोटे) तहाना, बाजार से सब्ज़ी आने के बाद उन्हें अलग-अलग थैलियों में रखना और फिर फ्रिज में रख कर आना. अगर आप के बच्चे भी ऐसे काम करना पसंद करते हैं तो उनके साथ अपने घर के काम साझा कीजिए. आप की मदद भी होगी और वो भी आने वाले समय में अपने सारे काम खुद कर पाएंगे.

ऐसे ही और भी कई युक्तियाँ आप अपना सकती हैं. अपने अगले पोस्ट में मैं एक और तथ्य रखने वाली हूँ कि बच्चों के स्क्रीन टाइम क्यों बढ़ रहे हैं और उसे कैसे संतुलित किया जाए. जैसा कि मैंने पहले भी कहा मेरा उद्देश्य स्क्रीन टाइम तो एकदम हटाना नहीं हैं. बच्चे काफी कुछ नया और अच्छा भी सीखते हैं टीवी और मोबाइल से. जरुरत हैं स्क्रीन टाइम को संतुलित रखने की. वो उतना कठिन नहीं हैं जितना लगता हैं. थोड़ा सा आप का चिंतन और थोड़ी सी आपकी रचनात्मकता आपके बच्चों का स्क्रीन टाइम संतुलित और निर्धारित रख सकती हैं.

पहले प्रकाशित यहाँ : https://hindi.momspresso.com/parenting/cooperation-communication-and-affection-thee-keys-of-parenting/article/mankhushaparivarakhusha-aise-rakhe-bachcho-ke-skrina-taima-ko-samtulita

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